मंगलवार, 1 अगस्त 2017

||कलम के सिपाही:मुंशी प्रेमचंद||

साहित्य की चर्चा हो और मुंशी प्रेमचंद की बात न हो तो ये बिल्कुल ऐसी बात होगी जैसे खीर बनानी हो और शक्कर की बात ही न हो.मूर्धन्य कहानी और उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद जी का नाम हिंदी साहित्याकाश पर सूर्य की भाँति जगमगा रहा है.

"पंच परमेश्वर"पहली कहानी थी,जो मेरे द्वारा पढ़ी गई थी.जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की मित्रता,मित्रता में कड़वाहट और अंत में उन दोनों का पुनर्मिलन बहुत ही प्रेरक और पंचायती राज की अवधारणा पर अवलंबित कहानी  है.

कहानी ''ईदगाह" माध्यमिक शाला के पाठ्यक्रम में शामिल थी.कहानी में सामान्य बालमन से परे हामिद का अपने दादी अमीना के कष्टों के प्रति ऐसा महान् दृष्टिकोण मनुष्य के तन-मन को झंकृत कर देता है.

"बूढ़ी काकी" भी एक बेहतरीन कहानी है.मनुष्य का बुढ़ापा आ जाने पर लोग किस तरह संवेदनहीन हो जाते हैं इसका बखूबी चित्रण उन्होंने किया है. उसी कहानी की एक लाइन है कि-"बुढ़ापा बचपन का पुनरागमन होता है".कितना सत्य है न?

साथ में एक बेहतरीन कहानी "सुभागी'' भी माध्यमिक शाला के पाठ्यक्रम में शामिल थी. आज हम बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देते हैं,पर मुंशी प्रेमचंद जी तो उससे पहले ही अपनी  कहानी में सुभागी के रूप में एक स्त्री के गुणों को बखूबी उकेरकर बेटियों को आगे बढ़ाने के पक्षधर रहे हैं.उसने इस कहानी में ये बताने की कोशिश की है कि लड़कियां किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं है.कहानी में जब बेटा और बहू  माता-पिता का साथ छोड़ देते हैं,तब एक बेटी  किस प्रकार माता-पिता की सेवा कर लोगों का हृदय जीत लेती है,ये कहानी का रोमांचक और प्रेरक पहलू है.
क्या गजब की कहानी है!
उसी तरह दो बैलों की कथा और पूस की रात भी बहुत सुन्दर और प्रेरक कहानी है.

बीए के पाठ्यक्रमों में शामिल "गबन" बेहतरीन उपन्यास है. मैंने इसका सार ही पढ़ा है पर इस में भी उन्होंने नारी के गुणों को सबके समक्ष रखा है.

उसकी महान रचना "गोदान" तो रचनाधर्मिता की पराकाष्ठा है. होरी के रूप में कृषकों की दयनीय दशा और बेबसी का उन्होंने वास्तविक चित्र  खींचा हैं.वहीं गोबर पात्र के माध्यम से उन्होंने वर्तमान के व्यवस्था के प्रति उदासीनता और परिवर्तन का पक्ष लिया है.

"कफन" कहानी भी बीए में शामिल थी.यह कहानी न केवल घीसू,माधव और उसके पत्नी की कहानी बल्कि यह मानव के दोगलेपन को उजागर करती है.ये एक कहानी मात्र नहीं है बल्कि स्वार्थी मानव पर करारा व्यंग्य भी है.ये कहानी पढ़ कर जैसे पाठक के तन मन में आग सी लग जाती है और उनके मुंह से एक आह सी निकलती है.

कुल मिलाकर मुंशी प्रेमचंद्र जी ने मानवीय संवेदनाओं,मानवीय मूल्यों, नारी के गौरव,और तत्कालीन ग्रामीण जीवन का बखूबी चित्रण अपनी रचनाओं में किया है.
उनकी हर कहानी घर-घर की कहानी है.उनका हर उपन्यास ग्राम्य परिवेश का दस्तावेज है.

अन्त में उपन्यास सम्राट, कलम के सिपाही आदि के नाम से विभूषित ऐसे महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद जी को उनके जन्मदिन पर सादर नमन.
( जितना मैंने उन्हें पढ़ा है)

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
     कोण्डागाँव(छत्तीसगढ़)

कोई टिप्पणी नहीं:

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...