गुरुवार, 1 जून 2017

||मैं एक मानव हूँ||

औरों की पीड़ा देखकर,
मुझे भी दर्द होता है.
किसी का रक्त बहता देखकर,
मेरा भी हृदय रोता है.

किसी बेबस बुढ़िया में,
मुझे अपनी मां नजर आती है.
किसी  सुन्दर  तरुणी में,
मेरी बहन मुझे दिखाई देती है.

देखता हूँ मैं जब,
किसी और का दुख,
हो जाता है कांतिहीन,
तब मेरा भी मुख.

किसी के खुशी से,
मुझे भी होती है प्रसन्नता.
और आहत होता है मन मेरा,
देखकर किसी की विफलता.

ऐसा क्यूँ होता है?
शायद इललिए कि,
मैं एक मानव हूँ.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

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