शनिवार, 3 जून 2017

||फोन पर सार्थक साहित्यिक विमर्श||

आज (2/06/2017)मेरे Facebook साथी कबीरधाम के श्री राजाराम हलवाई जी से फोन पर  की गई चर्चा शायद मेरे द्वारा फोन पर की गई सबसे लंबी व सार्थक साहित्यिक चर्चा रही.

उन्होंने हिंदी साहित्य के प्रति अपना अनुराग प्रकट किया.बचपन में पढ़े गए बेहतरीन कविताओं, कहानियों,निबंधों पर उनहोंने मुझसे विस्तारपूर्वक चर्चा की.उन्होंने परसाई जी की "टार्च बेचनेवाला" चतुर्वेदी जी के "पुष्प की अभिलाषा" फणीश्वर नाथ रेणु जी की "ठेस","संवदिया"सुदर्शन जी की कहानी "हार की जीत"विश्वंभरनाथ शर्मा की "ताई" प्रेमचंद जी के "पंच परमेश्वर","सुभागी"सहित अन्य कई रचनाओं व रचनाकारों के विषय में मुझसे विस्तृत चर्चा की.उन्हें पढ़ने का बहुत शौक है और उनकी स्मरण शक्ति भी वास्तव में अद्भुत है.

साथ ही उन्होंने हिंदी के कई नामचीन साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं जैसे अक्षरपर्व,हंस,ककसाड़ आदि के विषय में विस्तारपूर्वक चर्चा की.उन्होंने मुझे साहित्यिक पत्र- पत्रिकाओं से सतत् जुड़े रहने का महत्वपूर्ण सुझाव भी दिया.
बस्तर के साहित्य और साहित्यकारों को भी उन्होंने खूब पढ़ा है. गुलशेर अहमद शानी,लाला जगदलपुरी,राजीव रंजन प्रसाद ,के के झा,हीरालाल शुक्ल,हरिहर वैष्णव समेत कई ख्यातिलब्ध साहित्यकारों के विषय में उन्होंने बात की.
शानी जी को तो उन्होंने खूब पढ़ा है.

उन्होंने यह भी कहा कि बस्तर में जितना साहित्य लिखा जा रहा है उतना शायद और कहीं भी नहीं लिखा जा रहा है.

पुनः इस पोस्ट के माध्यम से मैं पुन: राजा राम हलवाई जी को सार्थक साहित्यिक विमर्श के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद प्रेषित करता हूं.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

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