रविवार, 18 जून 2017

||सब हँसकर सह लेता हूँ||

तनिक मुझे विश्राम नहीं,
जी तोड़ परिश्रम करता हूँ.
सर्दी-गर्मी-वर्षा से,
मैं भला कहाँ डरता हूँ.
कोई पूछे मुझसे,
उससे पहले ही कह देता हूँ.
बस्तर की मिट्टी से निर्मित मैं,
सब हँसकर सह लेता हूँ.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

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