यह धन,पद-यश जिसे पाकर,
गर्व से उठ जाता है न तुम्हारा शीश.
यह सब न मिलता तुम्हें,
यदि न मिलता तुम्हें,अपनों का आशीष.
तुमने ये सर्वस्वअपना,
अपनों से ही प्राप्त किया.
पर बदले में तुमने,
उनसे ही मुख मोड़ लिया.
आज जब सुख-सुविधा के,
झूले पर तुम झूल गए हो.
अपनों के प्रति हैं कर्तव्य क्या,
तुम ये ही भूल गए हो.
हठ छोड़ो,न बैठो केवल,
झूठे आडम्बर का पट ओढ़ कर.
अपनों के हित आगे आओ ,
लोभ-मोह और दम्भ छोड़ कर.
✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158
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