रविवार, 18 जून 2017

||शीश झुकाना लघुता नहीं||

बड़ों के आगे शीश झुकाना स्वयं के मानव होने की निशानी है.इसके द्वारा हम सामने वाले व्यक्ति के आत्मीय बन जाते हैं.
पुरातन काल से ही  हमें माता-पिता और गुरु के सम्मान करने की बात सिखाई जाती है.जो हमसे ज्ञान अनुभव और उम्र में बड़े हैं उनका सम्मान किया जाना ही चाहिए क्योंकि उन्होंने जीवन को हमसे अधिक जिया है तथा विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष कर विजय पाई है.चाहे कोई सफल व्यक्ति हो या असफल दोनों के ही अनुभव हमारे बड़े काम के हैं.जहां सफल व्यक्ति सफल होने के गुर बता सकता है,वहीं ज़िंदगी में नाकाम व्यक्ति हमें यह सिखा सकता है कि असफलताओं  से कैसे बचा जा सकता है.

हमारे इतिहास-पुराण भी साक्षी है कि जिन्होंने अपने माता,पिता और गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा रखी,उनकी सेवा सुश्रुषा की.वे अपने जीवन में औरों से कुछ भिन्न और महान कार्य कर गए.भगवान राम,कृष्ण,गणेश,श्रवण प्रहलाद,पितामह भीष्म आदि की मातृ -पितृ भक्ति और एकलव्य,अर्जुन उपमन्यु,आरुणि की गुरुभक्ति तो जगत प्रसिद्ध है.
बड़ों का सम्मान,उनका आशीष,हमारा पथ प्रदर्शन करता है.

कुरु भूमि में युद्ध से पूर्व धर्मराज युधिष्ठिर का कौरव पक्ष के सम्मानीय जनों के आगे शीश झुकाना अर्जुन के मन में चिंता उत्पन्न कर गया. उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से अपना संदेह व्यक्त किया. श्री कृष्ण बोले-"पार्थ!बड़ों का सम्मान करना,उनके आगे सिर झुकाना,लघुता की नहीं अपितु महानता का परिचायक है. द्रोण-पितामह जैसे वरिष्ठ योद्धाओं का आशीष प्राप्त कर धर्मराज युधिष्ठिर ने आधा युद्ध तो स्वत: ही जीत लिया है,और अब केवल आधा युद्ध लड़ना ही शेष रह गया है."

तात्पर्य यही है कि बड़ों का आदर करके हम अपने मानवीय गुणों का विस्तार करते हैं.और वही मानवीय गुण हमारी भावी सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

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