शनिवार, 3 जून 2017

||मैं कुछ भी नहीं हूं||

आज जब कोई यह कहता है,
कि यह सब तुमने किया है.
तो मैं कैसे भूल जाऊं कि ये सब,
मुझे किसी और ने दिया है.

माता-पिता के वो तेंदू पत्ता,साल बीज,
महुआ एकत्र करते हुए चेहरे.
जिनके पीछे छुपे थे शायद ,
जीवन के अनुभव-यथार्थ गहरे.

अभावों में रहकर भी दिया हमें,
उन्होंने भावनाओं का सुख.
बाधाएँ आईं कितनी हीं,
पर न हुआ,कभी फीका उनका मुख.

स्वयं पेट काटकर बच्चों का जतन,
ये त्याग कर सकते हैं बस माता-पिता.
पुत्र हित के लिए उन्हें,
स्वीकार्य है भीषण दुखों की  चिता.

पले अवश्य हम अभावों में,
पर दुख है क्या हमने कभी न जाना.
मूर्ख होगा वो जिसने छोड़ उन्हें,
किसी और को है ईश्वर माना.

हे भगवान मैं ये तो न जानूँ कि,
मैं कितना गलत,कितना सही हूँ.
पर इतना तो जानूँ ही,
कि उनके बिना मैं कुछ भी नहीं हूँ.

माँ की वो रोटियाँ-पिताजी के कंधे,
भला मैं कैसे भूल पाऊँगा.
अगले जन्म में मानव तन धर,
मैं फिर यहीं आऊंगा.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

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