सोमवार, 5 जून 2017

||वसीयतनामा||

जिंदगी में बहुत सारे कष्ट झेलकर उसने बेटे को पढ़ाया-लिखाया था.उसकी पत्नी नहीं थी पर उसने कभी बेटे को मां की कमी का अनुभव होने नहीं दिया.पर पुत्र अपने पत्नी के बहकावे में आकर अपने पिता का संग त्यागकर पत्नी के साथ गाँव से शहर  में बस गया.

पिताजी आठवीं पढ़े लिखे थे,लेकिन पढ़ने का तो  जैसे जुनून ही था.उनके पढ़ने के शौक ने उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया.जीवन के उतार चढ़ाव में उसने कई ज्ञान और अनुभवों को जिया था. इसलिए उसने कहानी,कविता,प्रेरक प्रसंग,नाटक,उपन्यास व अन्य साहित्यिक विधाओं में लिखना शुरु कर दिया.
उनकी रचनाओं में प्रेम,यथार्थ और पीड़ा की त्रिवेणी बह चली.लोगों ने उनकी रचनाओं को हाथों-हाथ लिया. उनकी रचनाएं दिल पर असर करतीं थीं. फलस्वरुप उसकी मुफ़लिसी का दुखद दौर समाप्त हो गया और  बहुत कम समय में ही उसने शोहरत की बुलंदियों को छू लिया.

उस साहित्यकार पिता के मौत के कुछ दिन पहले बेटे को चिट्ठी मिली,जिसमें उसने लिखा था कि-"बेटा मैंने दुनिया की सबसे बड़ी दौलत तुम्हारे नाम कर दी है."

आज पिता की मौत पर बेटा-बहू  दोनों आंसू बहाते घर वापस आए हैं.

पर पिताजी ने अपनी सारी संपत्ति तो लोक कल्याण के लिए अनाथ आश्रमों,धर्मशालाओं, आदि को दान कर दी थीं.

जब पिता का वसीयतनामा पढ़ा गया उसमें लिखा था-" मैं अपने प्यारे और एकलौते पुत्र के लिए मेरे द्वारा अर्जित की गई दुनिया की शायद सबसे बड़ी दौलत छोड़कर जा रहा हूं.ये वो धन है जिसकी सहायता से पूरी दुनिया को पलटा जा  सकता है.
और वो धन है,मेरी ये 5000 पुस्तकें,1डायरी और 1 कलम."

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

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