गुरुवार, 1 जून 2017

||वो परछाई थी||

था सुमन सा हृदय मेरा,
वो जिसे तोड़कर चली गई.
गहन अंधकार में वो,
मेरा साथ छोड़कर चली गई

सत्य ही कहा था उसने,
कि मैं तेरी परछाई हूँ.
जीवन भर का मैं तेरा,
साथ निभाने आई हूँ.

जब तक था मेरे संग प्रकाश,
थे तब तक मनभावन दृश्य.
पर ज्यों ही सूर्यास्त हुआ,
सदा के लिए हुई वो अदृश्य.

कुछ दिन मन के आसमान में,
वह बादल सी छाई थी.
मूरख मैं,ये समझ न सका,
कि सचमुच वो परछाई थी.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

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