शुक्रवार, 23 जून 2017

||साथ न छोड़ना कंदील||

आखिर क्या बात है.
कल भी तेरा साथ था,
आज भी तेरा साथ है.
तेरे भीतर है,
जैसे कोई कुदरती नूर.
जिससे अँधेरा हो जाता है,
पल भर में काफूर.
आह! तेरा त्याग,
कि मेरे लिए तू जलती है.
मन के किसी कोने में तेरे शायद,
मेरे लिए भी तनिक प्रीत पलती है.
औरों को रौशनी दे जो,
खुद अँधेरे में जलके.
तो कहो उसके लिए,
दिल में प्यार कैसे न छलके.
तेरा परोपकार देखकर,
आ गया तुझपे मेरा दिल.
अँधेरे में तुम कभी मेरा,
साथ न छोड़ना कंदील.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"

कोई टिप्पणी नहीं:

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...