रविवार, 11 जून 2017

||सत्य की खोज||

आज मुझे हिंदी यदि प्राणों की तरह प्यारा है तो उसके पीछे मेरे पिताजी का बहुत बड़ा हाथ है. क्योंकि बालपन में,मैं हिंदी में बहुत ही कमजोर था.बचपन में घर पर ही पिताजी ने श्रुतलेखन करवाकर मेरी हिन्दी सुधरवाई.छोटी बिंदी या मात्रा की गलती से भी वे नाराज हो जाते थे. यही कारण है कि मुझे आज भी अपने लेख में थोड़ी सी भी मात्राओं, बिंदियों अथवा शब्दों की त्रुटियां बहुत अधिक आहत करती हैं.

हाल ही में मेरी बहन अपने ससुराल से हमारे घर आई थीे. एक दिन मेरी कविता "मैं बस्तर की बेटी"की कुछ पंक्तियां पढ़ते-पढ़ते वह अचानक रुक गई.
उसने कहा-"भैया जहां तक मुझे लगता है कि "सुस्ताना"यह शब्द छत्तीसगढ़ी अथवा है हल्बी में प्रयुक्त होता है.पर आपने इससे हिंदी कविता में कैसे प्रयुक्त कर दिया?"

मैंने यह कविता लिख तो दी,पर मैंने भी इस विषय में नहीं सोचा कि हिंदी का शब्द है भी कि नहीं. बहन की बात सुनकर अब मेरा भी माथा ठनका. कहीं यह स्थानीय शब्द निकला तो?क्योंकि यह कविता मैंने हाल ही में एक पुस्तक में छपवाने के लिए ईमेल से प्रेषित करवाई थी,बहन उसी ईमेल की हार्ड कॉपी पढ़ रही थी.

मैंने अविलंब हिंदी शब्दकोश के पन्ने पलटे. मुझे यह देख कर बहुत संतोष हुआ कि "सुस्ताना" शब्द हिंदी के लिए भी प्रयुक्त होता है.हिंदी के कुछ शब्द हमारे स्थानीय बोलियों में भी इस प्रकार मिले हुए हैं कि कभी-कभी हमें समझ में ही नहीं आता कि वह हिंदी का शब्द है या स्थानीय बोली का.

"बीनना"शब्द भी छत्तीसगढ़ी ही प्रतीत होता है पर हिन्दी में इसका अर्थ होता है-एक-एक  करके इकट्ठा करना.

कुछ दिनों पहले एक और संदेह उत्पन्न हुआ था.
साल(वृक्ष)के बारे में.

क्योंकि शानी के कृतित्व में लिखा जाता है- "शाल वनों का द्वीप."
पर जब हम साल बीज संग्रहण करते हैं तो जो कार्ड हमें दिया जाता है उसमें लिखा होता है-"साल बीज संग्रहण कार्ड"
मैंने पता करने की कोशिश की,कि वास्तव में कौनसा शब्द सही है "शाल" या फिर "साल".
हिंदी शब्दकोश के माध्यम से ही पता चला कि वास्तव में दोनों ही शब्द सही हैं.

जीवन तो ऐसा ही है,जिसमें भूल-त्रुटियां होती रहती हैं.संदेह उत्पन्न होते रहते हैं.पर उन सबसे पार जाकर सत्य की खोज करना,ये हमारा काम है.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

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