गुरुवार, 22 जून 2017

||कंदील की रौशनी||

कभी बुझी-कभी जली.
बड़ी धोखेबाज होती है,
ये गाँवों की बिजली.
शुक्र है कि घर मेरे,
ये कंदील है जली.
मद्धम भले रौशनी इसकी,
पर लगती है मुझे तो बड़ी भली.
क्योंकि अपनी आधी ज़िंदगी,
इसी रौशनी में है पली.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

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