मानवीय गुणों पर,
आज भी भारी है वर्ण.
उच्च पदों पर आसीन,
हैं अब भी सवर्ण.
योग्य हो शूद्रत्व का,
दंश झेल रहा कर्ण.
और पा जाता है कोई,
बैठे-बिठाए ही स्वर्ण.
धरती माँ का सेवक सोता,
बिछा भूमि पर पर्ण.
करे वह क्रंदन कितना भी,
सुनेगा कौन?सब हैं अकर्ण.
✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158
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