मंगलवार, 27 जून 2017

||केशकाल की सुरम्य घाटी||

हुआ जब भी,
तुम्हारा दर्शन.
नव ऊर्जा से,
भर गया मेरा मन.
आज भी देखा,
तुम्हारा वही हरित रूप.
कुछ विटप खड़े थे छाँव में,
कुछ ने ओढ़ रखे थे धूप.
तुम्हारे मध्य से नील नभ की ओर,
उठते हुए वो रजताभ वाष्प समूह.
आह!आनन्द मिलता ऐसा,
जैसे ईश्वर से मिल रही कोई रूह.
पथ वृक्ष के सुमन भी,
प्रसन्नता से,थे ऐसे खिले हुए.
जैसे गोरी को साजन आज दिखा,
कई दिन हो गए थे,परस्पर मिले हुए.
साल-मिश्रित वनों का मिलन स्थल,
केशकाल की ये सुरम्य घाटी.
है बहुत-बहुत पावन,
अपने बस्तर की माटी.
हे मेरे मन,जब सब कुछ है,
तेरे अपने ही पास में.
फिर निराश हो किसे ताकता,
ऊपर आकाश में.
समय निकल न जाय,
तू कुछ ऐसा कर ले.
इस अद्भुत सौंदर्य को,
सदा के लिए आँखों में भर ले.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

कोई टिप्पणी नहीं:

चाटी_भाजी

 बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली  हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...