शनिवार, 3 जून 2017

||समृद्धि कैसे नहीं आएगी||

एक दिन वो मिली मुझे,
मैंने पूछा अरी ओ समृद्धि,
तू आई क्यों नहीं,
अब तक न हुई बस्तर की वृद्धि.

बोली वह मैं अवश्य आती,पर हैं कहाँ?
तुम्हारी वो विशेषताएँ पुरातन.
अब तो जैसे समाप्त हो रहे,
शनै: शनै: सब नैसर्गिक धन.

वो हरे भरे वन,
अब मैदान बन गए.
गाँवों तक में,
ऊँचे ऊँचे भवन तन गए.

वो नीरवता खोती जा रही ,
बड़े बड़े बन रहे कारखाने.
विवश जनता दुख झेलती,
बाहर जाती खाने-कमाने.

लाठी है उनके हाथों में,
पहने हैं जो सूट बूट.
भोले बस्तर वासियों को जो,
सतत रहे हैं लूट.

और ऊपर से ये लाल आतंक,
मौत का ये  खूनी खेल.
मुरझा रही है स्वत: ही,
यहाँ मानवता की बेल.

मैं तो हुई अचंभित कि,
अरे ये है कौन सा पथ?
शव बिखरे थे इधर-उधर,
रक्त से सने लथपथ?

अपने अधिकारों-कर्तव्यों के लिए,
उठो अभी,और आगे बढ़ो.
यह लड़ाई तुम्हारी है,
तुम इसे बहादुरी से लड़ो.

करो कुछ ऐसा कि,
बरसों तक कही जाय तुम्हारी गाथा.
तुम्हारा नाम सुनकर ही,
गर्व से ऊँचा हो जाय सबका माथा.

हम सब का प्रयत्न,
इक दिन रंग लाएगी?
फिर कहो  बस्तर में,
समृद्धि कैसे नहीं आएगी.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

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