मोहन बहुत ही ईमानदार शिक्षक था.
ऐसा कभी नहीं हुआ कि वह इस स्कूल में लेट हुआ हो. उसके बच्चे उससे बहुत प्यार करते थे.उसकी पत्नी नहीं थी,इसलिए वह अपना काम स्वयं ही करना पसंद करता था.हैंडपम्प से बाल्टियों में पानी लाना,घर में बर्तन मांजना,अपने कपड़े साफ करना जैसे काम वह खुद ही करता था.
अभी हाल में ही उसका ट्रांसफर एक नए गांव में हुआ था. राष्ट्रीय राज्य मार्ग पर लगा हुआ,यह एक छोटा सा गांव था,जहां ज्यादातर लोग आदिवासी थे.
यहां उसे लोगों से बहुत स्नेह,सहयोग और सम्मान मिलता था.इसी गांव में एक मुस्लिम दंपत्ति भी रहते थे,जावेद और उसकी बीवी शायरा.मोहन को स्कूल जाते हुए उनके घर सामने से ही गुजरना पड़ता था.
मोहन उसे देखने पर उनके ऊर्दू ज़बान में कभी *अस्सलाम भाईजान* कह देता. जावेद भी दुआ सलाम करता पर जावेद को लगता कि यह हमारे मुस्लिम होने के कारण हमें चिढ़ाने के लिए ही ऊर्दू लफ्ज़ इस्तेमाल करता है.वैसे तो जावेद और शायरा में बहुत प्यार था,पर कभी-कभी दोनों किसी बात पर लड़-झगड़ भी पड़ते थे.
आज भी मोहन जब स्कूल आ रहा था तब दोनों मुस्लिम दंपत्ति के बीच कुछ कहा-सुनी हो रही थी.
स्कूल में देरी हो रही थी इसलिए उसने वहां रुकना ठीक नहीं समझा और सीधे स्कूल आकर बच्चों को पढ़ाने लगा.
अभी पढ़ाते हुए आधा घंटा ही हुए होगा कि स्कूल के बाहर जावेद के घर के आस-पास चीख-पुकार मच गई.
एक आदमी स्कूल में हाँफता हुआ आया और बोला-"मास्टरजी!मास्टरजी!जावेद की बीवी कुँए में कूद गई है."
मोहन जल्दबाजी में पुस्तक टेबल पर फेंककर सीधे घटनास्थल की ओर दौड़ा.
वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि शायरा कुएँ के अंदर गोते खा रही थी. और भीड़ के लोग केवल हाय तौबा मचाने में ही लगे थे.सब इसलिए भी शायद चुपचाप थे, कि ये तो दूसरे कौम के हैं.
पर मोहन ने आव देखा न ताव.बिना शर्ट और पेंट उतारे उसने कुएँ में छलांग लगा दी और कुछ ही देर में शायरा कुएँके बाहर थी.
जावेद और शायरा दोनों बहुत शर्मिंदा थे. जावेद ने शायरा से माफी मांगी.
उसने मोहन से कहा-" भैया. मैंने आज गुस्से में आकर पत्नी को बहुत अहसनीय बातें कह दी थी.यदि आज तुम न होते मुझे जीवन भर पर पछताना पड़ता."
शायरा ने कहा-'हां भैया!मेरे शौहर ने मुझसे जो भी कहा हो,पर मुझे भी कुएँ में कूद कर अपनी ज़िंदगी खत्म करने का क्या हक था.हमें माफ कर दो."
मोहन ने मुस्कराते हुए कहा-"मैं तुम दोनों को इस शर्त पर माफ करुंगा,कि तुम दोनों आइंदा किसी बात पर लड़ाई नहीं करोगे.मैं बार-बार कुएँ में कूद तो नहीं सकता न?
दोनों ने भी हँसते हुए कहा-"हां भैया हां.अब ऐसा ही होगा."
शायरा का कोई भाई नहीं था,इसलिए उसी दिन उसने मोहन को अपना भाई बना लिया.
उस दिन के बाद से अब,जब भी राखी का त्यौहार आता है न,शायरा अपने भाई मोहन को राखी जरूर बांधती है.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें