रविवार, 11 जून 2017

||प्रभात काल की बेला||

छँटा अंधकार,बीती गहरी रात.
नव प्रकाश लिए,आया है नवप्रभात.
हुई एक,नए दिवस की आहट
सुनो वह पक्षियों की,मधुर चहचाहट.
खजूर के वृक्ष,हैं खड़े ताल तट पर.
ताल जल मध्य तरंगित,एक और दिनकर
साल-सागौन के वृक्ष,हैं कोहरे से लिपटे हुए.
जैसे कई तरुणियाँ लाज से,स्वयं में हों सिमटे हुए.
सरिता का सौंदर्य भी,कर रही सबको नि:शब्द.
बह रही है जो करती,कल-कल का मधुर शब्द.
पूर्व दिशा से उतरा है,धरती पर रवि का प्रकाश.
खिली हुई है धरा पर,बिछी हुई ये हरित घास.
हैं खिलने लगीं देखो,बागों की फूल-कलियां.
है सुवासित गांव की,हर घर आंगन-गलियां.
कठिन समस्याएँ अपनी,जीवन की करने को हल.
निकल पड़ा देखो वो कृषक,लिए काँध पर हल.
ज्यों लगा हो धरती पर,अद्भुत सौंदर्य का मेला.
है सचमुच पावन-मनभावन,प्रभात काल की बेला.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

3 टिप्‍पणियां:

vivek sinha ने कहा…

बहुत सुन्दर

अशोक कुमार नेताम ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अशोक कुमार नेताम ने कहा…

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद भाई आपने मेरे ब्लॉग पर पहली टिप्पणी की है

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