रविवार, 11 जून 2017

||मिल जतिस मया के छाँव||

लागथे मोला कि में ह,
भात-साग घलो झन खाँव.
बस ओखर सुरता म,
लिखते जाँव-लिखते जाँव.
जानि अउ कतिक दुरिहा हे,
तोर बड़ सुघ्घर गाँव.
रद्दा मोला सूझय नहीं,
एती जाँव,कि ओती जाँव.
चल दे हों फेर खोजे बर वोला,
नी जानँव में ओखर नाँव.
मिल जतिस नहिं,एक कनि,
मोला ओखर मया के छाँव.
पूजा करतेंव दाई दंतेश्वरी  तोर,
अउ पखारतेंव में ह तोर पाँव.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

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