गुरुवार, 1 जून 2017

||दोहे||

बोल सको तो बोलो तुम,सबसे मीठे बोल.
बार-बार सुलभ नहीं,नर जीवन अनमोल.

कोई छोटा न बड़ा,सबको अपना जान.
धन-यश पर अपने कभी,न करना अभिमान.

उसके घर में देर है,पर नहीं कभी अंधेर.
न्याय मिलेगा एक दिन,तुझको देर-सबेर.

करना है तो कर लो तुम,सदविचार सत्कर्म.
प्राण भले ही त्याग दो,त्यागो न मानव धर्म.

पर पीड़ा से पीड़ित हो,है वही सच्चा मानव.
दुख लख औरों का हँसे,नर नहीं वो दानव.

धन वैभव अर्जित करो,भले ही शैल सामान.
जब तक सद्गुण न धरो,मिले नहीं सम्मान.

वन-वन किसे खोजत फिरे,अरे मूरख नादान.
मात-पिता जो घर तेरे,हैं सच्चे भगवान.

अधर्म होता देख कर,रहो न तुम कभी मौन.
ज्ञानीजन यदि चुप रहे,सत्य कहेगा कौन.

जिस पर तुझे अभिमान बड़ा,क्षणभंगुर यह रूप.
समय सदा एक सा कहां,कभी छाँव कभी धूप.

मन को अपने वश करो,बनो न इसके दास.
पग में  शीश नवाएगा,एक दिन ये आकाश.

✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158

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