आह!मेरी लेखनी इस बार देखेगी,
पावस ऋतु का अद्भुत सौंदर्य.
यह देखेगी इस बार,
नीले आकाश पर एकत्र होते,
घने काले बादलों को.
और आसमान से गिरते,
वर्षा जल की बूंदों को धरा के संग मिलते हुए.
साथ ही करेगी ये अनुभव,
धरातल से उठते ऊष्ण वाष्प की गर्माहट.
साथ ही महसूस करेगी ये,
धरती मां की गोद का स्पर्श कर,
हवा के संग बहती आती,
मिट्टी की सौंधी मनभावन महक.
पावस के अभिनंदन में झूम उठेंगे वृक्ष.
छलक उठेंगे नदी ताल और निर्झर.
किसान करेंगे अपने,हल-बैलों की आराधना.
जीवन यापन हेतु करेंगे वे,जैसे कठिन साधना.
दिखेंगे खेत की गीली मिट्टी से सने,
क्रीड़ा में निमग्न निर्भय-निश्छल बच्चे.
छतरी ओढ़े माताएं-बहनें जाते हुए खेत या बाजार.
या फिर वन को जाते हुए.
बीनने बस्तर का प्रसिद्ध बोड़ा-मशरुम.
या तोड़ने पान-दातौन.
दिखेंगे आशान्वित छात्र-छात्राएँ,
मन में भविष्य के सुंदर स्वप्न सजाए,
शालेय परिधान में सज्ज शाला जाते हुए.
भीगकर वर्षा जल की बूंदों से,
यह भूल जाएगी स्वयं को,
कुछ क्षणों के लिए और
उठाएगी यह आनंद,
वर्षा ऋतु के अप्रतिम संवेदन का.
फिर होगा पर्व-त्यौहारों के क्रम का आरंभ .
रथयात्रा-हरियाली से लेकर दशहरा-दीवाली तक.
मेरी लेखनी इस बार देखेगी.
खेतों में बोए गए बीजों के,
अंकुरित होने से लेकर,
फसलों के पकने तक की,
नवीन और सुखद यात्रा.
आह!होंगे कितने सुंदर-मनोरम दृश्य,
जिसे देखेगी मेरी लेखनी प्रथम बार.
क्योंकि वर्ष भर पहले तक,ये समझती थी,
स्वयं को एकाकी,दुर्बल और लाचार.
✍अशोक नेताम"बस्तरिया"
📞9407914158
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