रविवार, 24 दिसंबर 2017

||गाँव की मिट्टी||

सर न हो भले अपनों की गोद में,
न अपना कोई करीब हो.
पर जिस रोज भी मेरी मौत आए,
बस मेरे गाँव की मिट्टी नसीब हो.

अशोक नेताम "बस्तरिया"

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