सर न हो भले अपनों की गोद में,
न अपना कोई करीब हो.
पर जिस रोज भी मेरी मौत आए,
बस मेरे गाँव की मिट्टी नसीब हो.
अशोक नेताम "बस्तरिया"
बरसात के पानी से नमी पाकर धरती खिल गई है.कई हरी-भरी वनस्पतियों के साथ ये घास भी खेतों में फैली हुई लहलहा रही है.चाटी (चींटी) क...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें