रविवार, 24 दिसंबर 2017

||भीतरी के राक्छस ल मारन||

कइ साल ले जरावत आथन,
आय पाप के चिन्हारी रावन.
फेर मरे नही ओ ह,
सैतान बन गेहे हमर मन.

पइसा रइथे त पूछन नहीं कोनो ल,
चलथन अपन छाती ल फुलाके.
धरमारम के चिंता नइ हे,
रहि जथन पापकरम म भुलाके.

परनिंदा-चोरी-लबारी,
परनारी दरसन करथन.
क्रोध-इरसा के भीसन अगिन म,
हमन खुदे जरथन.

सत-असत सूझय नहीं,
भरे हे हिरदय म हमर अग्यान.
जम्मो चीज ल छोड़ जाबो,
तभो ले हमन करथन अभिमान.

आज जम्मो मिलके अपन,
भीतरी के राक्छस ल मारन.
सेवा-धरम ल अपनायके,
जिनगी ल अपन सँवारन.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

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