गोवर्धन गिरि पूजन करके कान्हा ने,
प्रकृति अर्चन का अनुपम संदेश दिया.
उसे कनिष्ठ ऊंगली पर धरकर उसने,
इन्द्र के कोप से वृंदावनवासियों का रक्षण किया.
प्रकृति के ही आशीष से,
जग में प्रसन्नता आती है.
अन्न-जल-वस्त्र आदि सब,
धरती माँ ही हमें दिलाती है.
आओ करें पंचतत्वों और,
गौ माता का वंदन-अभिनंदन.
पावन भारत की मिट्टी से,
अपने माथे पर लगाएं चंदन.
✍ अशोक नेताम "बस्तरिया"
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