मातृभूमि को किया समर्पित,
जिसने अपना तन-मन.
क्यों बहुत कठिन है आज
गाँधीजी सा जीवन.
अपनों की देख नग्नता,
जिसने त्यागा वस्त्र.
प्रत्येक युद्ध में थे जिनके,
सत्य-अहिंसा अस्त्र.
सब हैं इक मालिक के बंदे,
न किसी से तकरार करो.
जो तुम्हारा अहित चाहे,
तुम उससे भी प्यार करो.
तुमने जग को मानवता का,
अनुपम संदेश दिया है.
अपना समस्त जीवन केवल,
भारत माँ के लिए जिया है.
तुम्हारा सारा जीवन,
संघर्षों में ही बीता है.
जीवन सकल तुम्हारा जैसे,
साक्षात् भगवतगीता है.
भले चौक-चौराहों पर,
दिखते हैं गाँधीजी की मूरत.
पर उनके आदर्शों की शायद,
नहीं अब किसी को जरूरत.
राष्ट्रहित में झोंकी जिसने,
अपनी उम्र तमाम
नाम दे रहे लोग उसे,
मजबूरी का नाम.
कुछ भी कह ले कोई लेकिन,
हम तो यही कहेंगे.
बापू थे,
बापू हैं,बापू रहेंगे.
सदा याद रखेंगे हम बापू,
तुम्हारे कर्म-त्याग और संघर्ष.
तुम्हारे पथ पर चलकर ही,
हो सकेगा संसार का उत्कर्ष.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
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