रविवार, 24 दिसंबर 2017

||हल्बी ठसा||

एसे बलुन मैं आजि ले,
दखेन्से तुचो बाट.
साँग तो तुय आजिकाल,
रसित कोन बाट.

जीव काटी होउन जायसे,
तुचो नंजर ने आसे असन धार.
हासते-झूलते रेंगसित असन,
बोहेसे जसन नंदी चो धार.

तुचो मोहनी रूप के दखुन,
लाज होयसे बेर.
दखुक तुके थेबसोत सबाय,
लोगमन के होयसे बेर.

मय गरीब आजि तूय,
मचो खतहा साइकिल ने बस.
एक दिन पयसा कमउन,
दखसे मैं घेनेन्दे बस.

तुचो मन चो कागच ने लिखलो,
लिखा के मैं नी पड़लें.
बिन सोचुन समजुन मैं,
तुचो मया ने पड़लें.

मया चो रस तुचो धरा नी,
होलीसे छाती चो तुमा काना.
काँई मके दखा नी दय,
मय होलेन्से काना.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

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