रविवार, 24 दिसंबर 2017

||हिरदय के पीरा||

छोड़ के चल दे मोला,
तें ह परदेस म.
होगेंव परदेसिन में,
अपने देस म.

बिधाता काबर मोर उपर ,
अइसन जुलुम करत हे.
माँग-पूस के महीना म,
मोर छाती जरत हे.

करा ह जइसे जाड़ म,
कौनो ल सुहावय नहीं.
वइसने मोला तोर बिन,
अउ कुछु भावय नहीं.

दिनमान नान्हे होगे,
अउ रात होगे बड़ा भारी.
रतिहा काटे कटय नहीं,
का करँव में बिचारी.

अपन मन  दरपन म,
तोर मुँह ल देख लेथँव.
छाती म बान चलावत जाड़ म,
तोर सुरता के आगी सेंक लेथँव.

पीरा म तन ह मोर,
अइसन सूखत हे.
जइसे कौनो कीरा ह,
मोला दिन-रात चुहकत हे.

कैसे रिसा गेय हस?
कि आवस नहीं गाँव म.
कि बइठा ले हस सउत ल तें ह,
तोर मया के रूख छाँव म.

✍अशोक नेताम " बस्तरिया"

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