मेरी बहन ने ये पोस्ट फेसबुक पर अक्टूबर महीने में की थी पर मैंने इसे कल ही पढ़ा.
पढ़कर मेरी आँखें भर आई और मैं फिर से पुराने दिनों में लौट गया.वही चिट्ठी आप सबके लिए...
दो शब्द भैया के लिए...
मैं गलत थी.
..भैया जब जबआपका तस्वीर देखती हूँ, मुझे अपनी गलती आंखों के सामने तैरती नजर आती है.
आपको याद होगा भैया ,बचपन में आप और मैं कितना झगड़ते थे.आपके चेहरे पर आंख के ऊपर और नीचे चोट का जो निशान अलग से नजर आता है , वो और किसी ने नहीं बल्कि,आपकी बहन ने काँच के गिलास से वार किया था,किस्मत की बात रही कि आँख को नहीं लगी.उस दिन के वार से आपके चेहरे से खून कितना निकला मुझे ही याद है..
लेकिन आज तक भैया मुझे कुछ न बोले ..और ना ही किसी को इसके बारे में बताए होंगे.. घर की भेदी लंका ढाये . लेकिन गलत मै ही थी .
..उस दिन कांच का गिलास मे चाय पी रहे थे कुछ बात पर ऐसे झगड़े कि मैने गुस्से से हाथ मे रखा चाय का गिलास भैया के चेहरे पर मार दिया. पछतावा हुआ, लेकिन क्या करे ? किसी ने सच ही कहा है.. इंसान गुस्सा मे जो कुछ भी काम करता है वो बहुत भयानक ही होता है .. ...
भैया को देखते ही उस दिन की गलती आंखों में उभर आती है....
आज सबसे यही कहना चाहती हूं, कि मेरी तरह गलती कोई ना करे...
लेकिन आप जैसे भैया पाकर मै बहुत खुश हूँ.आज मेरे भैया कालेज में पढ़ाते हैं और मै घर गृहस्थी सँभाल रही हूं ..
...गर्व है मुझे अपने भाई पर ,मुझे ऐसा भाई हर जन्म मे मिले...
धन्यवाद
आपकी बहन
रागिनी मरकाम
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