रविवार, 24 दिसंबर 2017

||अवधरम चो बाट के नी धरा||

पाकलो केंश-सियान देंह,
कनिया हुन चो लोउन रहे.
जाए हाथ ने बड़गी टेकुन,
मुँडे लकड़ी भारा बोहुन रहे.

लकलका घाम ने,सहर चो,
डामर सड़क ने धिरे-धिरे जाए.
लकड़ी धरा-लकड़ी धरा बलुन,
हुन बिचारी फेर-फेर चिचयाए.

सबाय घरे गेस आजिकाल,
लकड़ी कोन धरता.
डोकरी चो करलानी गोठ के,
लेत कोन करता.

बिचारी इली कसन,
नहीं चप्पल हुनचो पाँय ने.
डंडिक रेंगली-डंडिक थेबली,
बसली बे कोनी रुक चो साँय ने.

देंह में पताय,
सकत नी हाय.
नस ने बल हुनचोे,
रकत नी हाय.

मान्तर दखा तुमि,
हुनचो कमातो के.
पसना बोहायसे रोजे,
नी जाने सुस्तातो के.

आपलो दुख के,
हुन दूसरा के नी साँगे.
काँई नी हाय हुन चो घरे,
तेबले आउर के भीक नी माँगे.

मान्तर इथा तो लोग,
आउर के लूटुन खासोत.
अवधरम काम करुन भाति,
हुनमन गंगा नहाउक जासोत.

अवधरम चो बाट के,
भुलकन भले नी धरा.
पर चो धन केबय धरा नी दय,
तुमि मिहनत-मसागत करा.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

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