जे ह पाल-पोस के बड़े करिस,
ओखरे से मुहु मोड़ लिन.
सियानी के बेरा म बेटामन ह,
अपन बाप ल छोड़ दिन.
आज लालू सहर के चउराहा म,
साल ओढ़के भीख माँगथे.
फेर कोइ ल दया नी आवय,
कभु खथे,भुक्खा रहि जथे.
धरम के जमाना चल दिस,
आज कोन दूसर के चिंता करथे.
आज के मनखे ह तो,
अपनेच्च बर जिथे अउ मरथे.
लालू देखथे कि पइसावालामन,
कुकुर ल अब्बड़ मया करथें.
ओला काँध म बइठाथें अउ,
अपन बइहाँ म पोटारके धरथें.
फेर गरीब ल देखके,
इहाँ काखरो छाती नइ पिघलय.
कुकुर घूमते कार म अउ,
कउनो ल सइकिल तक नी मिलय,
सहर म कुकुर बिस्कुट अउ,
बड़ मजा म भात-साग खथें.
अउ गरीब तो कभु बिन खाये,
पानिच ल पीके चुपचाप सुत जथें.
साबुन म नहातेंव में,
बिस्कुट-मिठइ खातेंव.
गाड़ी म बइठ के,
में ह जगा जगा जातेंव.
मालिक संग महु ह,
सुघ्घर नींद म सोतेंव.
हे बिधाता कास कि,
मे ह कुकुर होतेंव.
सोचत-सोचत-जाड़ म काँपत,
लालू ह साल ल ओढ़के सुत गिस.
अउ अइसे सुत गिस कि,
बिचारा दुबारा कभ्भु नइ उठ सकिस.
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
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