पाषाण पूजन को नकारा जिसने,
और पतितों को सम्मान दिया।
नमन बाबा घासीदास जी को,
जग को मानवता का ज्ञान दिया।
सब अंश एक ही शक्ति के,
फिर कोई उच्च क्यों?
क्यों कइयों की दीन अवस्था।
कर्म प्रधान है सकल विश्व,
है निराधार वर्ण व्यवस्था।
विश्वास रखो सतनाम पर,
सदैव मुख से सत्य कहो।
मांसाहार,चोरी,जुआ और,
व्याभिचार से दूर रहो।
न केवल मानव से बल्कि,
पशु-पक्षियों से भी प्यार करो।
सब मानव हैं एक समान,
सबसे समता का व्यवहार करो।
जड़-चेतन गुण-दोषयुक्त,
जिसने ये जगत बनाया है।
है सबका इक पिता वही,
सब में वही समाया है।
असाधारण व्यक्तित्व,
मुख पर तेज-सरल वेश।
आपकी मानवीय शिक्षाओं से,
उपकृत हुआ देश-विदेश.
मेरे मन-वचन-कर्मों के,
दूर हो जाएँ सारे गन्द।
और कुछ नहीं आस मेरी,
बस मिल जाए आपकी कृपाकन्द।
✍अशोक नेताम "बस्तरिया"
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