रविवार, 24 दिसंबर 2017

||बहुत उपयोगी है बस्तर का जिर्रा||

जिर्रा बस्तर का एक प्रमुख फसल है.इन दिनों खेतों में जिर्रा की लाल-लाल फलियाँ अनायास ही मन मोह लेती हैं.जिर्रा बड़े ही काम का पौधा है.जगदलपुर के आस-पास इसे भेंडा के नाम से भी जाना जाता है.शेष छत्तीसगढ़ में इसे अमारी के नाम से जाना जाता है.खट्टे स्वाद के कारण इसके पत्ते की सब्ज़ी को खट्टा भाजी भी कहते हैं.

प्राय: लोग इसकी भाजी के लिए ही इसे उगाते हैं,
पर बस्तर में लोग खेत में भुट्टा के साथ जोंधरी,झुंड़गा,अरहर,खीरा,बोदेला,जिर्रा,आदि की बुआई भी कर देते हैं.

जिर्रा के पौधे में 3 महीने में फूल लग जाते हैं.जो दिखने में कुछ-कुछ भिंडी के फूल की तरह दिखाई देते हैं.लगभग साढ़े तीन महीने में पौधों में लाल-लाल फलियाँ लग जाती हैं.लाल-लाल आवरण के बीच फली होती है जिसमें बीज लगे होते हैं.

इसके लाल आवरण को बस्तर में  जिर्रा टोपा के नाम से जाना जाता है.कच्चे जिर्रा टोपा की चटनी बनाई जाती है व सूखे टोपे से अमचूर बनाया जाता है.सब्जी में खटाई के रूप में जिर्रा टोपा का प्रयोग किया जाता है.जिर्रा टोपा की सब्जी भी बहुत ही स्वादिष्ट होती है.

यदि किसी ने जहर का सेवन कर लिया हो तो उसे जिर्रा टोपा का रस पिलाया जाता है,जिससे सारा विष वमन के रुप में पेट से बाहर निकल आता है.

जिर्रा के तने के से रेशों से रस्सी भी बनाई जाती है.
इस तरह जिर्रा बस्तर वासियों के लिए एक महत्वपूर्ण फसल है.

✍ अशोक नेताम "बस्तरिया"

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