रविवार, 24 दिसंबर 2017

||हमारा घर-हमारी बाडी़||

गांव में प्रायः कई प्रकार के पेड़-पौधे मिल जाते हैं.हमारे घर में भी कई वनस्पतियाँ हैं जैसे-तिखुर,टुड़गुना,पोइ भाजी,कोचइ,अमली,आम,सिवना,बहेडा़,भेलवा,रामफल,सीताफल,आलू कांदा और भी बहुत कुछ।आइए मैं उन्हीं में से कुछ पौधों के बारे में आपको बताता हूं.
साथ ही उन सबके छायाचित्र भी मैं आपके साथ बाँट कर रहा हूं.

१)जोंधरी:-
ज्वार को ही बस्तर में जोंधरी कहा जाता है.यह भुट्टे की प्रजाति का पौधा है जो लगभग 15-16 फीट ऊंचा होता है. इस पौधे के शीर्ष पर इसके सफेद बीज किसी फूल के पंखुड़ियों की तरह चारों तरफ बिखर कर नीचे की ओर झूल जाते हैं.इसके बीजों का उपयोग लाई(खील)बनाने के लिए किया जाता है.पहले विभिन्न उत्सव जैसे माहला(सगाई),छठी(नामकरण संस्कार),मरनी(मृतक कर्म) आदि के अवसर पर जोंधरी लाई का ही उपयोग किया जाता था,पर बस्तर में अब इसका उत्पादन बहुत कम होने के कारण  ऐसे अवसरों पर केवट जाति के द्वारा बनाई गई लाई का उपयोग किया जाता है.

२)चिरायता:-
चिरायता के पौधे को भुँइनीम कहा जाता है.यह प्राय:पर्वतीय-पथरीले इलाकों में पाया जाता है.एक दो पौधे उग आने के बाद यह तेजी से फैल जाता है.यह औषधीय पौधा मलेरिया के रोग में बहुत ही असरकारक है.प्राय: ग्रामवासी इसे शहरों में विक्रय करने ले जाते हैं.

३)रखिया:-
रखिया को बस्तर में राखड़ी कुमडा कहा जाता है,क्योंकि इसके फल को देखने पर ऐसा  प्रतीत होता है जैसे इसके चारों तरफ राख लगा दी हो. कई लोग इसकी सब्जी भी खाते हैं.प्रायः लोग इसका उपयोग बड़ी बनाने के लिए करते हैं. रखिया की बड़ी लोगों को बहुत भाती है.बाजारों में लोग इसे प्राय: जोड़ियों में बेचते हैं.

४)गन्ना:-
दंडाकार के कारण गन्ना को ही डाँडा कहा जाता है.पहले डाँडा एक प्रमुख फसल थी.इसका रस निकालकर रस से गुड़ बनाया जाता था.आज भी कइयों के घर में गुड़ बनाने वाली विशाल कड़ाही दिखाई देती है.आज भी गन्ने के गुड़ बाजारों में दिखाई देते हैं,पर अब गन्ने का उत्पादन बहुत ही कम होता है.

५)साल:-
सालवृक्ष बस्तर में सरगी के नाम से जाना जाता है.छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष भी है. बस्तर में साल वनों की अधिकता होने के कारण ही शानी ने इसे साल वनों का द्वीप कहा है.ये बहुपयोगी पेड़ है.यह बहुत विशाल पेड़ होता है.इसके पत्ते से दोने-पत्तल तैयार किये जाते हैं.ग्रामीणजन आज भी दोने-पत्तलो में ही भोजन करते हैं.गांववासी इसके बीजों का संग्रहण और विक्रय कर अच्छी आय अर्जित करते हैं.इस वृक्ष की इमारती लकड़ी बहुत  मजबूत और टिकाऊ होती है.यह वृक्ष जनजातीय जीवन से बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है,इसलिए लोग इस वृक्ष की पूजा करते हैं.

६)कुन्दरु:-
कुंदरु से लगभग सभी लोग परिचित हैं.इसकी लताओं को जमीन में गाड़ देने पर यह आसानी से उठाता है.इसके फल का उपयोग साग बनाने के लिए किया जाता है.इसकी सब्जी बड़ी ही स्वादिष्ट  होती है.कुछ लोगों से मैंने सुना है कि यह बुद्धि का नाश करती है,पर मुझे तो ऐसा नहीं लगता. कभी किसी विद्वान से इस विषय पर चर्चा करके देखूँगा.

७)बाँस:-
बाँस को बाँओस कह दिया जाता है.यह बस्तर का बहुत उपयोगी वृक्ष है.इससे पारधी जाति द्वारा बुट्टी(गोल छोटी टोकरी),ओडी(बड़ी गोल टोकरी),टुकना(चौकोर टोकरी),गप्पा(बड़ी चौकोर टोकरी),ढुटी(बर्तननुमा पात्र जिसमें मछली आदि रखे जाते हैं),छतोड़ी(एक तरह का छाता)चटाई आदि बनाए जाती है.बाँस के कोमल तने(बांस्ता या करील)की सब्जी भी बड़ी ही स्वादिष्ट होती है.इस प्रकार बाँस बस्तर वासियों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण वृक्ष है.

८)अरहर:-
अरहर में अ का लोप होने के कारण प्राय:इसे रहर और हल्बी में राहड़ कह दिया जाता है. क्या बस्तर में कुलथी और उड़द के बाद  तीसरा सबसे महत्वपूर्ण दलहन का फसल होता है.खेतों की मेड़ों पर खड़े अरहर के हरे-भरे पौधे बहुत ही सुंदर दिखाई देते हैं.

९)जिमीकाँदा:-
जिमीकाँदा छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध कंद है.इसकी सब्जी बनाई जाती है.यह कोचई(अरबी) की तरह का ही कंद है,इसलिए इसकी सब्जी  बनाने समय कुछ खटाई अवश डालना पड़ता है. नहीं तो गले के नीचे खुजली होने का अनुभव होता है.

१०)हल्दी:-
बस्तर के गाँवों में अधिकांश घरों में हल्दी(हरदी)के पौधे पाए जाते हैं. हल्दी न केवल सब्जी बनाने में प्रयुक्त की जाती है बल्कि अनेक शुभ अवसर पर हल्दी का प्रयोग किया जाता है.विवाह के अवसर पर भी वर-वधू को हल्दी और तेल का लेप चढ़ाया जाता है.साथ ही हल्दी कई दिव्य औषधीय गुणों से युक्त होती है.

११)झिर्रा भाजी:-
झिर्रा को छत्तीसगढ़ी में अमारी कहा जाता है.यह लोगों की  पसंदीदा भाजियों में से एक है. खट्टा स्वाद होने के कारण इसे खट्टा भाजी भी कहा जाता है. घर की बाड़ी या खेत के मेड़ ,खलियान आदि में लोग इसकी बुवाई करते हैं.इसकी फल के बाहरी  लाल आवरण को भी सब्जी बनाकर खाया जाता है,तथा इससे अमचूर भी बनाई जाती है.

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