रविवार, 24 दिसंबर 2017

||तुमा और ओरका||

मनुष्य की प्रकृति ऐसी है कि वह अपने जीवन को सरल बनाने के लिए सतत् प्रयासरत रहता है.घने जंगलों में बसने वाले आदिवासी भी प्रकृति की छत्रछाया में रहकर और उससे प्राप्त वस्तुओं से अपने जीवन को सरल बनाने का प्रयत्न करते हैं.
आइए आज मैं आपको लौकी से बनने वाली दैनिक जीवन में प्रयोग की जाने वाली पात्र तुमा(तुम्बा)और ओरका के बारे में सामान्य जानकारी दे दूँ.

क)तुमा(तुम्बा):- तुमा या तुम्बा से शायद ही कोई व्यक्ति परिचित न हो.आकार के अनुसार लौकी कई प्रकार की होती है और प्राय: छत्तीसगढ़ी में किसी भी प्रकार की लौकी को तुमा कह दिया जाता है.पर बस्तर में एक विशेष आकार की लौकी से तुमा का निर्माण किया जाता है.
गोल मटके की आकार के लौकी को उसके बेल में ही व्यस्क होकर कठोर होने दिया जाता है.सूख जाने पर  उसके शीर्ष भाग को काट कर उसे मटके की तरह खोखला कर दिया जाता है.और इस तरह तुमा का पात्र तैयार हो जाता है. लटकाने की सुविधा के लिए इसके गले में रस्सी बांध दिया जाता है.
ये तुमा ठीक थर्मस फ्लास्क का काम करता है.बस्तरवासी इस पात्र में  प्रायः मड़िया का पेज अथवा सल्फी रखते हैं.इस पात्र में 2-3 लीटर पेय पदार्थ आसानी से रखा जा सकता है.

2)ओरका:-  यह लंबे और गदा के आकार की लौकी से बनाया जाता है.इसे भी उसके बेल में सूखने दिया जाता है,फिर उसके शीर्ष भाग को गोलाकार में अनुप्रस्थ काट कर उसके भीतर के अंशों को अलग कर लिया जाता है.इस तरह ये ओरका बन जाता है.इस पात्र की सहायता से घड़े से  पानी निकालने का काम किया जाता है.(नारियल के कठोर भाग को अर्ध वृताकार में काटकर व लकड़ी का दंड जोड़कर भी ऐसे ही पात्र का निर्माण किया जाता है.)बस्तर में प्रायः हाथ-पैर धोने के स्थान के पास ओरका और मटके में पानी रखा हुआ होता है.

✍ अशोक नेताम "बस्तरिया"

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