रविवार, 24 दिसंबर 2017

||आमचो जीवना||

बड़े बिहान मैं निकरलें,
खमना बाट बुलुक.
शीतकार चो समया ने,
रान चो सोभा दखुक.

जे बाट बले जाए नँजर,
चारो खुट धुँआर चे धरु रहे.
जसन कोनी सुँदरी सनसार के,
आपलो बस ने करु रहे.

बाटे तरइ ने लाल-लाल,
बोडेंदा चो फूल फुलु रहोत.
मछरी चो लालच ने कोकोड़ामन,
धड़ि-धड़ि ओग्गाय बसुन रहोत.

चार डाहका पूरे चो,
रुक के बल दखुक नी होय.
मान्तर लाफी चो गोठ के,
एकीदाँय टड़ंग ने सुनुक होये.

सीत ने देंह असन,
थरथर-थरथर थरथरे.
जसन बाघ के दखुन,
कोनी कोडरी थरथरे.

चुलचुल चिडरा-लमहामन,
एबाट-हुनबाट डगाओत-पराओत.
कोयली-मयना-सुआ-पंडकीमन,
काय सुँदर मीठ गीतमन के गाओत.

खिंडिक समया पाछे,
काय सुँदर बेर उदली.
बेर ओस ने जोन असन,
पंडरी दखा दिली.

बेर उजर रुक मन के चिंगड़ुन,
खमन भीतरे अमरे.
जसन अंधार ने कई हजार ठान,
दीया एकी संग जरे.

चार-पाँच ठान कोलया मन बले,
राने दखा दिला.
रुक के तो सारते जाउँसे कहाँ रसोत बे,
हुनमन माइ-पिला.

जोंगले  मैं दुय चार ठान,
सूका लकड़ी.
कोनी मोठ-कोनी पातर,
कोनी लाम-कोनी अकड़ी.

सबाय के रचुन मैं,
सिंयाड़ी लहा ने बाँधले.
काँध ने बोहुन लकड़ी के,
आपलो घर ने आनलें.

हुनी ने हमचो घर गोसाइन,
भात-साग राँधली.
माइ-पिला मिसून खादलूँ,
खुबे हरिक लागली.

ए भूँय,ए लेहरा,ए पानी,
ए सरगी,महू,चार सिवना.
एचोय किरता ने चलेसे,
उदिम ने आमचो जीवना.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

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