रविवार, 24 दिसंबर 2017

||आओ सब मिलकर रहें||

तुम शहर में रहते हो,
हम गाँव में रहते हैं.
तुम रोड में चलते हो,
हम बाट में रेंगते हैं.
तुम चावल खाते हो,
हम चाउर खाते हैं.
तुम ड्रिंक करते हो,
हम मंद पीते हैं.
तुम जाब करते हो,
हम बूता करते हैं.
तुम चप्पल पहनते हो,
हम पनही पहनते हैं.
तुम पियार करते हो,
हम मया करते हैं.
तुम कसम खाते हो,
हम किरिया खाते हैं.
तुम घर में रहते हो,
हम कुड़िया में रहते हैं.
तुम झाड़ू लगाते हो,
हम बाहरी में बहारते हैं.
तुम बरस करते हो,
हम दतुन करते हैं.
तुम सेल्फी लेते हो,
हम सल्फी लेते हैं.
तुम मेरिज करते हो,
हम बिहाव करते हैं.
तुम्हारे घर प्रकाश होता है,
हमारे यहाँ उजुर होता है.
तुम्हारे घर दरवाजा है,
हमारे घर खपाट है.
पर इतने मात्र से तुम हमें,
खुद से अलग न मान लेना.
हम भी किसी से कम नहीं,
ये भली भाँति जान लेना.
तुम हो,जिसके अंश.
हम भी तो हैं,उसी के वंश.
जब तुम्हें और हमें,
उसी ने बनाया है.
फिर किस अज्ञान ने,
हमें भरमाया है.
क्यों न एक दूसरे से,
हम अपना सुख-दुख कहें.
एक आदमी होता सदा अधूरा,
आओ हम सब मिलकर रहें.

✍अशोक नेताम बस्तरिया

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