रविवार, 24 दिसंबर 2017

||हार||

लगभग आठ घंटे के लंबे सफर के बाद मैं घर पहुंचा.पत्नी पलकें बिछाकर  मेरा इंतजार कर रही थी.घर में गर्मागर्म चाय-पकोड़ों से मेरा स्वागत हुआ.

"बहुत जँच रहे हो प्राणनाथ."
उनके रसयुक्त वचनों ने तो मेरा हृदय जीत लिया.
रोज भोजन के साथ-साथ मुझे भी पकानेवाली के श्रीमती के मुख से ऐसी वाणी सुनकर यात्रा की सारी थकान जाती रही.उनको पत्नी के रूप में चयन करना मुझे प्रथम बार सही प्रतीत हुआ.

लेकिन सीआईडी के एस पी प्रद्युम्न की तरह मेरा माथा ठनका-
कुछ तो गड़बड़ है.

प्रायः ऊधारी,बाइक,चंदा आदि मांगने वाले,या अपना उल्लू सीधा करने वाले लोग ही ऐसे अद्भुत प्रेम का प्रदर्शन करते हैं.

"वो जो पड़ोस की शीला है न?उनके पति उनसे बहुत प्यार करते हैं."

"लक्ष्मी तुम्हें दूसरों के व्यक्तिगत विषयों पर नजर नहीं रखना चाहिए.क्या मैं तुम्हें प्यार नहीं करता?"

"दरअसल शीला के पति ने उनके लिए नौलखा हार खरीदा है."

मेरी शक की सुई सही दिशा में जाती हुई प्रतीत हुई.पर मैंने भी ठान लिया था कि इस बार मैं उसके लपेटे में नहीं आऊँगा.

"खरीदा होगा पर हमें क्या?उनकी तनख्वाह अधिक है और खर्च बहुत ही कम.हमारी कमाई तो बच्चों की फीस और गाँव में खेती-किसानी के कामों में ही खप जाती है.
दूसरों की नकल भला हम क्यों करें भई.सादगीभरा जीवन में जीने में ही जीने की सार्थकता है."

"वाह भाई वाह!तुम जो हर साल जूते,कोट,टाई,बेल्ट,चश्मा आदि पर रुपये लुटाते हो.अपने चांदी जैसे सफेद बालों को कालिख पोतकर अपने बुढ़ापे को छुपाते फिरते हो,उसमें क्या रुपये बेकार खर्च नहीं होते.मैंने एक फरमाइश क्या कर दी तुम तो मुझे ही जीवन का ज्ञान सिखाने लगे.खुद को सजाना भी क्या पाप है?"

"तुम्हारी बात सही है प्रिये!पर खुद कर्ज में डूबकर स्वयं को सोने-चांदी से सजाना तो केवल मूर्खता है."

"मैं कुछ नहीं जानती.मुझे इस बार हर कीमत पर नौलखा हार  पर चाहिए."

"पड़ोसन के कुएँ में कूदने पर क्या तुम भी कुएँ में खुद जाओगी."

"हाँ-हाँ कूद जाऊँगी.आपने मेरी जिद न मानी तो मैं मायके चली जाऊंगी."

प्रत्येक हठी विवाहिता की भाँति ही पत्नी ने अपना अंतिम और अचूक अस्त्र चलाया,
जिससे मेरा कोमल हृदय विदीर्ण हो गया.

एकाकी जीवन की कठिनाइयों को,
अविलम्ब मैं भाँप गया.
स्त्री विरह की कल्पना मात्र से,
मैं काँप गया.

और पत्नी की हार की जिद के आगे मैं हार गया.

✍अशोक नेताम "बस्तरिया"

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