रविवार, 24 दिसंबर 2017

||बैलाडीला की शाम||

दिन का यात्री सूरज,
थककर चूर हो गया.
संध्या ने उसे चुपके से,
अपने आँचल में छिपा लिया.

साँझ होती ही पर्वत
जगमगा उठा संग नई आभा लिए.
जैसे किसी के स्वागत में,
जलाए गए हों पंक्तिबद्ध सहस्त्रों दीए.

उस दिव्य प्रकाश में चमकते हैं,
सफेद बादल बिलकुल चाँदी की तरह.
गिरि पर दिखता विचित्र प्रकाश,
जैसे खोल रहा मन की गिरह.

चहुँओर अद्भुत-अनुपम सौंदर्य,
हैे इस प्रकार बिखरा.
जैसे कि उतर रही हो स्वर्ग से,
साक्षात् कोई अप्सरा.

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