शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

।।पतंग से वार्तालाप।।

एक दिन मैंने,
पतंग को उड़ते  देखा।
मैंने पूछा"पतंग तुम निर्जीव हो।
कागज के चंद टुकड़ों,
और बाँस की कुछ सींकों से तुम बनी हो।
फिर भी तुम इतना ऊंचा उड़ लेती हो।
सदा मुस्कुराती फिरती हो।
और एक मैं हूँ,
जो जीवित होते हुए भी,
उड़ पाने में सक्षम नहीं हूं।
ऐसा क्यों है?"

पतंग बोली-"किसी भी काम के लिए,
साहस सबसे बड़ी आवश्यकता है।
यह तो सबको ही पता है।
फिर हल्का होना भी जरुरी है मेरी तरह।
हृदय के साथ,
अपनों से प्रेमरूपी धागा भी,
लगातार जोड़े रखना।
अन्यथा तुम भटकते-भटकते
नीचे गिर पड़ोगे।
हवा यानी की वक्त की दिशा में ही सदैव चला करो।
प्रकृति का विरोध
तुम्हें नष्ट कर सकता है।
अगर तुम मेरी बात मानोगे।
विश्वास करो बहुत ऊंचा उड़ोगे।
तुम तो एक मनुष्य हो।
कुछ ऐसा करो
कि सारा संसार
तुम्हारे कार्य पर
तुम्हारी ऊंचाइयों पर नाज़ करे।"

रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
✍kerawahiakn86@gmail.com
Mob.9407914158

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