संतान पाने नित मिन्नत करती।
नौ माह हमें गर्भ में पालती।
लाने जग में फिर प्रसव पीड़ा सहती।
वो माँ है।
पुत्र का दुख स्वयं सह जाती।
अपने रक्त का दूध पिलाती।
हमें खिला फिर बाद में खाती।
वो माँ है।
छुपा लेती हमें अपने आँचल तले।
लाख गलतियाँ हम कर लें भले।
फिर भी लगाती जो हमें गले।
वो माँ है।
कितनी भी मुश्किलें आएँ।
हर लेती पुत्र की हर बलाएँ।
जिनकी महिमा दुनिया गाए।
वो माँ है।
मां की अहमियत समझ नादान।
सेवा कर उनकी बन गुणवान।
पूजते जिसे स्वयं भगवान।
वो माँ है।
रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
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