मनुज जो तुम चाहते थे,
वह अवसर मैंने,
आज तुम्हें दे दिया है।
अब ये तुम जानो कि,
तुम इस पर कितना
खरा उतर पाते हो।
तुम्हारी जिद मैंने मान ली है,
देखता हूँ क्या कर पाते हो।
जीत और हार का फैसला
मैं नहीं,तुम्हारा विश्वास करेगा।
मेरा आशीष तुम्हारे संग है,
आज तू किसी से नहीं डरेगा।
नासमझ है जो मुझको,कहता भाग्य विधाता है।
मानव स्वयं ही तो अपने
भविष्य का निर्माता है।
ऐसा अवसर जीवन में
बार-बार नहीं आता।
इसलिए चूकना नहीं,
साथ तुम्हारे है दाता।
पक्का यकीन है मुझको,
तू का मेरा अनुशरण करेगा।
धैर्य-साहस हृदय भर ले,
विजय तुम्हारा वरण करेगा।
रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
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