उन पर मैं आश्रित हूं ,
वो मेरे आधार हैं।
सुमुख,सुंदर नयन-वर्ण,
नैनों में सम्मोहन है।
वो सद्गुण आगार हैं।
उन पर मैं आश्रित हूं ,
वो मेरे आधार हैं।
वे हैं तो सर्वस्व है।
नहीं तो कुछ भी नहीं,
बिन उसके जीवन बेकार है।
उन पर मैं आश्रित हूं ,
वो मेरे आधार हैं।
क्या राजा-रंक, दुर्जन-सज्जन,
उनके लिए सब एक समान।
वो सदैव उदार हैं।
उन पर मैं आश्रित हूं ,
वो मेरे आधार हैं।
उनके सम्मुख नतमस्तक सब,
कौन होता हूं मैं याचक?
जो भी दें स्वीकार है।
उन पर मैं आश्रित हूं ,
वो मेरे आधार हैं।
रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
✍kerawahiakn86@gmail.com
📞9407914158
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