गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

।।ये उदासी क्यूँ भला ।।

मन मेरे मत उदास हो
समाप्त नहीं हुआ समय,
पथ और भी हैं,मत निराश हो।

चलता चल,चलते- चलते,
कभी तो लक्ष्य मिलेगा।
तेरे विश्वास के प्रकाश से,
मुरझाया सुमन खिलेगा।
कर्म वो कर जिनसे,
निराशाओं का नाश हो।

मन मेरे मत उदास हो
समाप्त नहीं हुआ समय,
पथ और भी हैं,मत निराश हो।

जब न मिले वांछित फल,
तब लगती है हृदय को ठेस।
किन्तु ये न समझना कि,
अब तुझमें सामर्थ्य नहीं है शेष।
बना नया जहाँ,
जहाँ अपनी धरती अपना आकाश हो।

मन मेरे मत उदास हो
समाप्त नहीं हुआ समय,
पथ और भी हैं,मत निराश हो।

क्या आशाओं का रक्त
अब गया है सूख?
क्या मिट गई वो पहले की
कुछ नया करने की भूख?

शान्त,सुप्त,निष्क्रिय,निष्प्राण,
क्या तुम एक जिंदा लाश हो?

मन मेरे मत उदास हो
समाप्त नहीं हुआ समय,
पथ और भी हैं,मत निराश हो?

रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
✍kerawahiakn86@gmail.com
Mob.9407914158

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