सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

।।मोला नइ भावय ए सहर।।

बड़े-बड़े कल कारखाना।
भूँकत-गरजत,
उगलथें चोबीसों घंटा जहर।
मोला नइ भावय ए सहर।
मोला नइ भावय ए सहर।

दिन-रात रहिथे
चहल पहल।
चारों कोती दिखते,
सिमेंट के महल।
नी दिखय भईया,
एको ठन रूख।
ईहाँ बस,
कमाय-खाय के भूख।
जेती देखबे मनखेच-मनखे
जाबे तैं कते डाहर।
मोला नइ भावय ए सहर।
मोला नइ भावय ए सहर।

सजे दुकान देख ले,
रंग-रंग के।
कपड़ा पहिरे लोगमन,
कई ढंग के।
बड़ मुस्किल हे ददा,
इहाँ रहिके जियेके।
पइसा देय ल पड़थे,
पानी तक पियेके।
टींट-टींट,पोंक-पोंक,
गाड़ी चलय इहाँ आठों पहर।
मोला नइ भावय ए सहर।
मोला नइ भावय ए सहर।

एखर ले बढ़िया त आय,
मोर नान्हे असन गाँव।
देवी-देंवता के किरपा जहाँ,
रूख-राई के हे छाँव।
माटी दाई के अँचरा हरियर,
छलकय नरवा-नदिया।
कान म मीठ मिसरी घोलत,
गाए जिहाँ कोयलिया।
तन-मन ला शीतर करय
जिहाँ सुघ्घर हवा के लहर।
मोला नइ भावय ए सहर।
मोला नइ भावय ए सहर।

बड़े-बड़े कल कारखाना।
भूँकत-गरजत,
उगलथें चोबीसों घंटा जहर।
मोला नइ भावय ए सहर।
मोला नइ भावय ए सहर।

रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
✍kerawahiakn@gmail.com
📞9407914158

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