पीत वस्त्राभूषित जन,
शुभ मंत्रोच्चार,ये मंगलगान।
जो साक्षी इस पुण्य पल के,
सचमुच हैं वो भाग्यवान।
पावन माकड़ी धरती,
और यह पुनीत बेला।
लगा हो ज्यों यहाँ,
पवित्रात्माओं का मेला।
साक्षात् स्वर्ग का यहाँ होता भान।
जो साक्षी इस पुण्य पल के,
सचमुच हैं वो भाग्यवान।
ईशानुभूति में स्वयं का,
अहंकार घुल जाता है।
मोक्ष मिलता है मानव को,
सब पाप धुल जाता है।
आओ करें गुरूवाणी के अमृत का पान।
जो साक्षी इस पुण्य पल के,
सचमुच हैं वो भाग्यवान।
सावधान मानव! नारी
नहीं है केवल देह।
माता-भगिनी-पत्नी-सुता बन,
हम पर बरसाती नेह।
सदा करें हम उसका सम्मान।
जो साक्षी इस पुण्य पल के,
सचमुच हैं वो भाग्यवान।
असत्य-अधर्म त्याग,
ये मोह-माया छोड़ दे।
जग को विस्मृत कर,
निज को ईश्वर से जोड़ दे।
अवश्य तुझ पर कृपा बरसाएँगे भगवान।
जो साक्षी इस पुण्य पल के,
सचमुच हैं वो भाग्यवान।
पीत वस्त्राभूषित जन,
शुभ मंत्रोच्चार,यह मंगलगान।
जो साक्षी इस पुण्य पल के,
सचमुच हैं वो भाग्यवान।
रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
मोबाईल नम्बर 9407914158
✍kerawahiakn86@gmail.com
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