किससे मोह लगा कर बैठा
खुद पर क्यों इतराया है।
जिस को तू अपना समझे
वह तो बस एक माया है।
मिल जाए कुछ खुश होता है।
खो जाए वह तू रोता है।
आभूषणों से नित सजाता
क्यों क्षणभंगुर काया है।
जिस को तू अपना समझे
वह तो बस एक माया है।
मानव तन पा फूल गया तू।
अपना लक्ष्य भूल गया तू।
चौरासी लाख योनि पार कर
तू इस जग में आया है।
जिसको तू अपना समझे
वह तो बस एक माया है।
बन प्रभु भक्त, पर सेवा कर।
दया-प्रेम जल हृदय में भर।
मार सका है कौन उसे
जिस पर ईश्वर का साया है।
जिस को तू अपना समझे
वह तो बस एक माया है।
रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
✍kerawahiakn86@gmail.com
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