गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

।।कविता मेरी जान है।।

जाने क्यों पत्नी का
मुख-कमल मुरझाया था आज।
किसी बात से शायद मेरी
वो थीं बहुत नाराज।

बोली "जाने कहाँ जाते हो,
सांझ ढले घर आते हो।
कागज-कलम लेकर
कुछ लिखने बैठ जाते हो।"

पूछती मैं कब से फिर भी किंतु
अब तक आप मौन हैं।
आज तो जानकर ही रहूँगी,
कि कविता आप की कौन है?

मैं बोला"मेरी जमीन वो
मेरा आसमान है।
तुम भला क्या जानो
कि कविता मेरी जान है।"

"इतना रस उसमें कि
जग को भूल जाता हूँ।
उसका संग पाकर मैं
खुशी से  फूल जाता हूँ।"

सुन इतनी सी बात मेरी
उनकी भृकुटी हो गई टेढ़ी।
लेकर झाड़ू हाथ में अकस्मात्
मेरी ओर वह दौड़ी।

सिंहनी दिख गई हो जैसे,
डरकर मैं सरपट भागा।
कैसी औरत गले बाँध गया रब
मैं हूँ बड़ा अभागा।

कोई समझा दे उसे
न समझे वो नादान है।
कि कविता मेरी जान है।

रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
✍kerawahiakn86@gmail.com
📞9407914158

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