कभी लगता है कि,
शायद मेरी जिंदगी में,
बहुत बड़ी बड़ी खुशियाँ नहीं हैं।
छोटी छोटी खुशियों के पल हैं।
फिर भी खुश रहूँ तो ही बेहतर है।
मैं वही पाऊँगा,जो मैं खोजूँगा।
खुशी चाहूँ और गम मिले,
तो भी क्यूँ निराश होऊँ?
सम्भव है यही ईश्वर चाहते हों।
मैं तो मात्र एक कठपुतली हूँ,
जिन्हें ऊपरवाला अपने इच्छानुसार नचा रहा है।
ऐसे में तुम ही कहो क्या मैं रोऊँ?
ऊचित है कि मैं हर परिस्थिति में प्रसन्न रहूँ।
रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
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