शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

।।मैंने जीना सीख लिया है।।

मैं चला था मेरे यारा
मौत की तलाश में।
तुमसे मिलते-मिलते
मैंने जीना सीख लिया है।

मेरे साथ अजीब सा,
जाने क्या हो रहा था।
किस्मत पर अपनी मैं,
दिन-रात रो रहा था।
तकदीर के कपड़ों को,
मेहनत के धागों से।
मैंने सीना सीख लिया।

मैं चला था मेरे यारा,
मौत की तलाश में।
तुमसे मिलते-मिलते
मैंने जीना सीख लिया है।

राहे जिंदगी में,
तुझे दर्द भी मिलेंगे।
उम्मीदों की रोशनी से,
खुशियों के गुल खिलेंगे।
धीरे-धीरे,
गम के आंसुओं को,
मैंने पीना सीख लिया।

मैं चला था मेरे यारा
मौत की तलाश में।
तुमसे मिलते-मिलते
मैंने जीना सीख लिया है।

रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
✍kerawahiakn86@gmail.com
📞9407914158

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