मैं चला था मेरे यारा
मौत की तलाश में।
तुमसे मिलते-मिलते
मैंने जीना सीख लिया है।
मेरे साथ अजीब सा,
जाने क्या हो रहा था।
किस्मत पर अपनी मैं,
दिन-रात रो रहा था।
तकदीर के कपड़ों को,
मेहनत के धागों से।
मैंने सीना सीख लिया।
मैं चला था मेरे यारा,
मौत की तलाश में।
तुमसे मिलते-मिलते
मैंने जीना सीख लिया है।
राहे जिंदगी में,
तुझे दर्द भी मिलेंगे।
उम्मीदों की रोशनी से,
खुशियों के गुल खिलेंगे।
धीरे-धीरे,
गम के आंसुओं को,
मैंने पीना सीख लिया।
मैं चला था मेरे यारा
मौत की तलाश में।
तुमसे मिलते-मिलते
मैंने जीना सीख लिया है।
रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
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