शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

।।आप सब को धन्यवाद और नमस्कार।।

साथियों नमस्कार!
मेरे द्वारा लगातार अपने विचारों और भावनाओं को फेसबुक के माध्यम से आप सबके बीच लाने का जो प्रयास हो रहा है,उसमें आप सबकी प्रेरक प्रतिक्रियाएँ मेरा पथ प्रदर्शन कर मुझे कुछ नया करने की प्रेरणा देती हैं।
मेरी आज की कविता आप सभी पाठकों को समर्पित है।

।।आप सब को धन्यवाद और नमस्कार।।

आप सबकी की प्रेरणा से ,
करता रोज मेैं नई कविता तैयार।
आत्मीय साथियों!
आप सब को धन्यवाद और नमस्कार।

ईश्वर का स्मरण कर,
शीघ्र शैय्या त्यागता हूं।
लिखने को मैं नित्य,
प्रातः काल जागता हूं।
लेकर एक हाथ में लेखनी-पत्र
गाल पर होता है दूसरा हाथ।
फिर करता हूँ मैं,
स्वयं से ही बात।

आते हैं तब मस्तिष्क में,
कई तरह के विचार।
आत्मीय साथियों!
आप सब को धन्यवाद और नमस्कार।

मन जैसे किसी सागर में,
खो जाता है।
मैं कुछ भी नहीं करता,
जाने मुझसे ये कैसे हो जाता है।
पहले विचारों के सागर से,
लेता हूं नए शब्द निकाल।
तब किसी बुनकर सा,
मैं बुनता हूं शब्दजाल।

फिर कल्पनाएँ लेती है,
एक रचना का आकार।
आत्मीय साथियों!
आप सब को धन्यवाद और नमस्कार।

मैं एक तुच्छ मानव,
मैं क्या जानू काव्य कला।
कोई रचना कर सकूं,
मुझ में कहाँ इतना सामर्थ्य भला?
त्रुटियों पर क्षमा करें,जानकर मुझे,
एक छोटा सा बच्चा।
लेकिन मैं करूँगा प्रयत्न कि,
लिख सकूँ आगे कुछ अच्छा।

मिलती रहे बस मुझे,
आपकी प्रतिक्रिया,आशीष और दुलार।
आत्मीय साथियों!
आप सब को धन्यवाद और नमस्कार।

रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
✍kerawahiakn86@gmail.com
📞9407914158

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