शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

।।मैं अजनबी क्यों रहूँ।।

अपने तुम्हारे लिए और
तुम अपनों के लिए।
अब तक अजनबी हो।क्यों?

यहां पराया कौन है?
कि बैठा तू उदास,
अब तलक मौन है।

सब तो हैं जाने-पहचाने से।
कुछ हासिल नहीं होगा।
अगर तू गुमसुम रहेगा।

दीप जले मगर निर्जन में।
फिर उसके जलने का औचित्य ही क्या?

फिर दीपक तो तू है ही।
तब किस बात से घबराता है।
तेरी सार्थकता तो तभी है,
जब कोई तुझसे प्रकाश पाता है।

रचनाकार:-अशोक "बस्तरिया"
✍kerawahiakn86@gmail.com
📞9407914158

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